Monday, 4 May 2020

मैं गाँव हूँ - Village Life is Better than City Life, Hence Proved

मैं गाँव हूँ!:🏡

मैं वही गाँव हूँ जिस पर ये आरोप है कि यहाँ रहोगे तो भूखे मर जाओगे। मैं वही गाँव हूँ जिस पर आरोप है कि यहाँ अशिक्षा रहती है। मैं वही गाँव हूँ जिस पर असभ्यता और जाहिल-गँवार का भी आरोप है। हाँ मैं वही गाँव हूँ जिस पर आरोप लगाकर मेरे ही बच्चे मुझे छोड़कर दूर बड़े-बड़े शहरों में चले गए। जब मेरे बच्चे मुझे छोड़कर जाते हैं मैं रात भर सिसक-सिसक कर रोता हूँ फिर भी मरा नहीं। मन में एक आस लिए आज भी निर्निमेष पलकों से बाट जोहता हूँ कि शायद मेरे बच्चे आ जाएँ। उन्हें देखने की ललक में मैं सोता भी नहीं हूँ लेकिन हाय! जो जहाँ गया वहीं का हो गया। मैं पूछना चाहता हूँ अपने उन सभी बच्चों से क्या मेरी इस दुर्दशा के जिम्मेदार तुम नहीं हो? अरे मैंने तो तुम्हे कमाने के लिए शहर भेजा था और तुम मुझे छोड़ शहर के ही हो गए। मेरा हक कहाँ है? क्या तुम्हारी कमाई से मुझे घर, मकान, बड़ा स्कूल, कॉलेज, इन्स्टीट्यूट, अस्पताल आदि बनाने का अधिकार नहीं है? ये अधिकार मात्र शहर को ही क्यों? जब सारी कमाई शहर में दे दे रहे हो तो मैं कहाँ जाऊँ? मुझे मेरा हक क्यों नहीं मिलता?

इस कोरोना संकट में सारे मजदूर गाँव भाग रहे हैं, गाड़ी नहीं तो सैकड़ों मील पैदल बीबी बच्चों के साथ चल दिये आखिर क्यों? जो लोग यह कहकर मुझे छोड़ शहर चले गए थे कि गाँव में रहेंगे तो भूख से मर जाएंगे वो किस विश्वास पर पैदल ही गाँव लौटने लगे? मुझे तो लगता है निश्चित रूप से उन्हें ये विश्वास है कि गाँव पहुँच जाएंगे तो जिन्दगी बच जाएगी, भर पेट भोजन मिल जाएगा, परिवार बच जाएगा। सच तो यही है कि गाँव कभी किसी को भूख से नहीं मारता।

आओ मुझे फिर से सजाओ, मेरी गोद में फिर से चौपाल लगाओ, मेरे आंगन में चाक के पहिए घुमाओ, मेरे खेतों में अनाज उगाओ, खलिहानों में बैठकर आल्हा खाओ, खुद भी खाओ दुनिया को खिलाओ। महुआ व पलास के पत्तों को बीनकर पत्तल बनाओ, गोपाल बनो, मेरी नदी, ताल-तलैया, बाग-बगीचे गुलजार करो। बच्चू बाबा की पीस पीस कर प्यार भरी गालियाँ, रामजनम काका के उटपटांग डायलाग, पंडिताइन की अपनापन वाली खीझ और पिटाई, दशरथ साहू की आटे की मिठाई, हजामत और मोची की दुकान, भड़भूजे की सोंधी महक, लईया, चना कचरी, होरहा ,बूट, खेसारी सब आज भी तुम्हे पुकार रहे हैं।

मैं तनाव भी कम करने का कारगर उपाय हूँ। मैं प्रकृति के गोद में जीने का प्रबन्ध कर सकता हूँ। मैं सब कुछ कर सकता हूँ बस तू समय-समय पर आया कर मेरे पास, अपने बीबी बच्चों को मेरी गोद में डाल कर निश्चिंत हो जा, दुनिया की कृत्रिमता को त्याग दे। फ्रीज का नहीं घड़े का पानी पी, त्यौहारों-समारोहों में पत्तलों में खाने और कुल्हड़ों में पीने की आदत डाल, अपने मोची के जूते और दर्जी के सिये कपड़े पर इतराने की आदत डाल, हलवाई की मिठाई, खेतों की हरी सब्जियाँ, फल-फूल, गाय का दूध, बैलों की खेती पर विश्वास रख कभी संकट में नहीं पड़ेगा।हमेशा खुशहाल जिन्दगी चाहता है तो मेरे लाल मेरी गोद में आकर कुछ दिन खेल लिया कर तू भी खुश और मैं भी खुश।

(वाट्सएप से साभार)