अगर आप इंदौर से हैं तो आपसे हाथ जोड़कर निवेदन है कि इन तथ्यों पर निगाह डालें और शहर को बचाने के लिए अब आगे आ जाएं वरना कुछ दिनों में सबकुछ तबाह हो जाएगा...
इंदौर में कोरोना आग की तरह फैल रहा है और प्रशासन, राजनेता और तमाम जिम्मेदार सिर्फ आंकड़े छुपाने में लगे हुए हैं। अगर आप आज कोरोना का टेस्ट करवाने जाएंगे तो आपकी रिपोर्ट 10 दिन बाद आएगी तब तक आप या तो दुनिया से चले जाएंगे या ठीक हो चुके होंगे। इस दौरान आप अपने परिवार और आसपास के कई लोगों को संक्रमित कर चुके होंगे। इनमें से जो भी लोग थोड़े बहुत कमजोर होंगे वे आपकी वजह से दुनिया से चले जाएंगे।
भारत में ही केरल, गोवा और कई राज्य कोरोना फ्री हो चुके हैं क्योंकि उन्होंने रोज हजारों टेस्ट किए, 24 घंटे में रिपोर्ट दी और मरीजों को ठीक किया लेकिन इंदौर में ऐसा नहीं हो रहा। हमारा ध्यान जान बचाने पर नहीं आंकड़े छुपाने पर लगा हुआ है।
पिछले एक महीने में यह साबित हो चुका है कि मलेरिया इफेक्टेड देश जैसे भारत में यदि कोई व्यक्ति कोरोना के लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर के पास चला जाए और 24 घंटे में उसकी रिपोर्ट दे दी जाए तो वह 10 से 15 दिन इलाज के बाद ठीक हो जाता है। इस दौरान उसे कुछ सामान्य दवाएं दी जाती हैं और उसे आसानी से बचाया जा सकता है। यदि हमारे यहां जांच रिपोर्ट जल्दी आने लगे तो हम हजारों लोगों की जान बचा पाएंगे।
सोचने वाली बात है कि इंदौर शहर में प्राइवेट लैबों को जांच की अनुमति लेने में जोर आ गए। प्रशासन द्वारा फालतू बहाने बनाए गए और उन्हें जांच की अनुमति नहीं दी गई। सिर्फ इसलिए कि आंकड़े न बढ़ते जाएं। देश के दूसरे राज्यों में जो लैब दिनरात जांच कर रही हैं उन्हें भी यहां पर जांच की परमिशन नहीं दी गई।
अब बात अस्पतालों की। इंदौर में बॉम्बे हॉस्पिटल, सीएचएल अपोलो, राजश्री अपोलो, रॉबर्ट, सेन फ्रांसिस और छावनी स्थित क्रिश्चियन हॉस्पिटल सबसे बड़े ब्रांड हैं। ये वे अस्पताल हैं जो इस शहर में कोरोना से पहले चांदी काट रहे थे लेकिन आज इन्होंने खुद को शहर के लिए बंद कर दिया है। सवाल यह है कि इन्हें रेड कैटेगिरी में क्यों नहीं लिया गया और जवाब बिल्कुल सही और इतना सा है कि इस शहर में सबसे अधिक अप्रोच भी इन्हीं की है।
बॉम्बे हॉस्पिटल जब शहर में आया तब बताया गया कि शहर की मेडिकल इमेज ही बदल जाएगी। यह शहर में चार चांद लगा देगा। जमीन से लेकर तमाम सुविधाएं इसे सरकार ने उपलब्ध कराई। आज सरकार भी इसे कोरोना मरीजों के इलाज के आदेश नहीं दे सकती क्योंकि इसकी और इन सब तमाम अस्पतालों की पकड़ बहुत ऊपर तक है। अगर शहर को संकट से उबारने में इन अस्पतालों का इस्तेमाल शुरू कर दिया जाए तो कुछ ही दिन में हालात सुधरने लगेंगे।
अब रही बात लॉकडाउन खोलने की। क्या 15 दिन बाद सब सुधर जाएगा। कुछ नहीं सुधरेगा। शहर बर्बाद हो जाएगा। नेता और अधिकारी कह रहे हैं कि आंकड़े कम होते जाएंगे, निश्चिंत रहिए। यह तो होगा ही क्योंकि आंकड़े छुपाना भी तो आपके ही हाथ में है। हम सुधारने की बजाय सब बिगाड़ते जा रहे हैं।
अब हमारे पास आखिरी और सबसे खतरनाक अस्त्र बचा है जो हम मलेरिया और डेंगू में करते हैं। रिपोर्टिंग के दौरान मैंने कई खबरें की जिसमें पाया कि शहर में बारिश के समय हर साल 10 से 15 हजार लोगों को मलेरिया होता है लेकिन सरकार अपने आंकड़ों में सिर्फ 60 से 70 मरीज बताती है। तर्क दिया जाता है कि हम प्राइवेट लैब की रिपोर्ट सही नहीं मानते। सोचिए, इससे बड़ा मजाक कुछ हो सकता है। देश की सर्वश्रेष्ठ लैबों की रिपोर्ट यदि आप सही नहीं मानते तो बंद क्यों नहीं कर देते। इसलिए बंद नहीं कर सकते क्योंकि पूरी दुनिया जानती है कि वे सबसे सटीक रिपोर्ट देते हैं पर दुनिया को आप यह नहीं बताना चाहते कि आपके देश में अब भी मलेरिया कितना अधिक फैलता है। आप अंतरराष्ट्रीय मंच पर छाती ठोंककर कहते हैं कि हम मलेरिया फ्री कंट्री बन रहे हैं, सिर्फ इसलिए आप उनकी रिपोर्ट नहीं मानते।
अब कुल मिलाकर आप सब कोरोना में भी यही करेंगे। लगभग कुछ ऐसा जो आज पश्चिम बंगाल और कुछ अन्य राज्य कर रहे हैं। संक्रमण फैल रहा है, लोग मर रहे हैं और आप उनकी जांच रिपोर्ट नहीं दे रहे। मरने के बाद बताते हैं कि वे निमोनिया से मरे, हार्टअटैक से मरे या किसी अन्य बीमारी से मरे। इंदौर में भी यही हो रहा है। मरने के बाद आप उस व्यक्ति की रिपोर्ट या तो छुपा लेते हैं या फिर गलत बता देते हैं।
शहर के नेताओं, अधिकारियों और देश के जिम्मेदारों से निवेदन है कि सुधर जाएं इस बातों को छुपाने का प्रयास न करें। जनता बेवकूफ है पर इतनी भी नहीं है। बीमारी फैलती जाएगी तो एक दिन उसका भी गुस्सा फूट जाएगा, यदि आप अभी संभल गए तो सबकुछ संभाल पाएंगे। अभी नहीं संभले तो सिर्फ इंदौर ही नहीं पूरा देश बर्बाद कर जाएंगे।