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*ना कल का पता, ना पल का पता*
❓❓❓❓
कोई बात करे है बरसों की,
कोई सोच रहा कल-परसों की.
पर ... भाई मेरे, सच ... तो है ये,
ना कल का पता, ना पल का पता
फिर सोच रहा क्यों बरसों की ..!!
जो अपनी किस्मत का लेखा है,
किसने पढ़ा, किसने देखा है.
हाथों में किस्मत जो पढ़ता है,
झूठी कहानी वो गढ़ता है.
इन्सां का कहा ~ सच कब है हुआ,
ना कल का पता, ना पल का पता
फिर सोच रहा क्यों बरसों की ..!!
🕗
ये वक्त हर पल बदलता है,
सुख-दु;ख के साँचे में ढलता है.
छोड़ा नहीं वक्त ने राम को,
फिर आदमी का क्या अंज़ाम हो.
कब जाने कहाँ ~ क्या होगा यहाँ,
ना कल का पता, ना पल का पता
फिर सोच रहा क्यों बरसों की ..!!
❣️
क्या मिलके, जाने क्या खो जाए,
कब जागी किस्मत भी सो जाए.
हालात के साथ इन्सां यहाँ,
एक पल में क्या से क्या हो जाए.
दुनिया में यही ~ एक बात सही,
ना कल का पता, ना पल का पता
फिर सोच रहा क्यों बरसों की ..!!
ना कल का पता, ना पल का पता
फिर सोच रहा क्यों बरसों की ..!!
🙏😟💲😟🙏