Tuesday, 7 April 2020

प्रेम संजीवनी बूटी है। और घृणा कोबरा सांप है - Wise Words by Swami Vivekanand

🌞 ओम 🌞
🙏🏻नमस्ते जी 🙏🏻
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      *प्रेम* संजीवनी बूटी है। और *घृणा* कोबरा सांप है। संजीवनी बूटी सबके जीवन की रक्षा करती है। कोबरा सांप सब की जान ले लेता है। 
किसी मनुष्य के मन में प्रेम है। किसी के मन में घृणा। अर्थात कोई व्यक्ति तो समाज के लिए संजीवनी बूटी का काम करता है, सबकी रक्षा करता है, सबका प्रिय पात्र बनता है। और कोई व्यक्ति दूसरों से घृणा करता है, तो समझ लीजिए कि उसके अंदर कोबरा सांप है। वह सबको विष प्रदान करता है, और सबके लिए हानिकारक होता है। *अब जिसके अंदर जो होगा, वही तो बाहर आएगा न!*
        *जो व्यक्ति समाज को प्रेम देता है, अर्थात सबकी रक्षा करता है, सबको सुख देता है सब की उन्नति में सहयोगी होता है, समाज उसकी प्रशंसा करता है, उसे सिर आंखों पर बिठाता है। उसे सम्मानित करता  है। उस के गीत गाता है। हजारों लाखों वर्षों तक उसका नाम आदर से लिया जाता है। जैसे श्री राम जी, श्री कृष्ण जी आदि के नाम हजारों लाखों वर्षों से लोग उनका सम्मान कर रहे हैं.*
और जो व्यक्ति दूसरों से घृणा करता है, सब की हानि करता है, सबको दुख देता है, सबको विनाश की ओर ले जाता है। समाज उस को अपमानित करता है। उसकी बुराई करता है। उसको हीन दृष्टि से देखता है हज़ारों लाखों वर्षों तक उसे इस घृणा कर्म का दंड भोगना पड़ता है। ऐसे लोगों में रावण दुर्योधन कंस आदि के नाम प्रसिद्ध हैं। इतिहास के इन अच्छे बुरे पात्रों से हमें यह सीखना चाहिए, कि हम श्रीराम जी, श्रीकृष्ण जी आदि महापुरुषों जैसे बनें, रावण दुर्योधन कंस आदि जैसे नहीं। सबके साथ प्रेम पूर्वक शुद्ध न्यायपूर्ण व्यवहार करें। किसी के साथ भी घृणा, द्वेष अभिमान एवं अन्यायपूर्वक व्यवहार न करें।
 - *स्वामी विवेकानंद परिव्राजक*