35 लाख में 136, ये विस्फोट है या काम-धंधे को बंद करने का प्लान। कुछ नी होगा किसी को। ठीक हो जाएंगे। यूं भी एक बार सबको होगा। या होकर कई लोग ठीक हो चुके हैं। 1000 मे से 1 के नुकसान की आशंका मे 999 को भूखे नहीं मारा जा सकता। कोरोना को जितनी हवा देनी थी दे ली। अब रोजी-रोटी का सोचो। नहीं तो बहुत जल्द कोरोना से *को* हट जाएगा और केवल रोना ही बचेगा। डर के आगे ही जीत है।
यह धारणा पूरी तरह अवैज्ञानिक है कि ओड, इवन या राइट, लेफ्ट से कोरोना फैलेगा या रुकेगा । इससे कोरोना फैले ना फैले अवसाद,हिंसा, प्रतिहिंसा,बेरोजगारी,महंगाई शर्तिया फैलेगी । इसकी चेन तो साल, दो साल नहीं टूटेगी तो क्या आप किसी को कोई काम ही नहीं करने देंगे ?
मुश्किल यह है कि जो प्रशासनिक अधिकारी फैसले लेते हैं, उन्हें एक तारीख को वेतन मिल जाता है । घूमने को ड्राइवर सहित कार है।घर के काम के लिए नौकर है ।वे उन लोगों का दर्द,परेशानी क्या जानें जिन्हें सुबह तय समय पर पानी भरना है, दूध,सब्जी लेकर आना है।दुकान ,कारखाने में दिन भर में आने वाले दस,बीस लोगों को भी एक मीटर के फासले पर खड़े रखना है। अपने कर्मचारियों की आधी - पूरी तनख्वाह देना है ।अपने कर्ज चुकाने हैं । बिजली, पानी ,पेट्रोल,किराए के पैसे समय पर अदा करने हैं । नेतृत्व हां में हां मिलाकर खुश है, अपना पल्ला झाड़ रहा है ।
दुनिया की 777 करोड़ की आबादी में 6 माह में केवल सवा करोड़ लोग संक्रमित हुए हैं और 5.60 लाख मौत हुई है। इस तरह संक्रमण 0.16 प्रतिशत है और मौत का प्रतिशत नगण्य। केवल भारत में सड़क दुर्घटना से सालाना डेढ़ लाख मौत होती है और विभिन्न बीमारियों से 70 लाख ।
कृपया, अब कोरोना का रोना बंद कर अपनी स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर करने, दवा जल्द विकसित करने और लोगों में साहस व आत्म विश्वास बढ़ाने पर जोर दीजिए । लोगों से कहिए कि अपने काम - धंधे करें और एहतियात बरतें । अवाम दूध पिता बच्चा नहीं है, जो पूरे समय मुंह में पुप्सी डालकर रखें ।अपनी चमड़ी बचाने के लिए लोगों को बेमौत मरने,पागल हो जाने,खुदकुशी करने के लिए सामान न जुटाया जाए ।
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